| تكلمت كالماضين قبلي بما جرت |
| فلا يعتمدني الإساءة غافل |
| به عادة الإنسان أن يتكلما |
| فلا بد لابن الأيك أن يترنما |
| فكيف أكتم أشواقي وبي كلف |
| تكاد من مسّه الأحشاء تنشعب؟ |
| أم كيف أسلو ولي قلب إذا التهب |
| بالأفق لمعة برق كاد يلتهب |
| إذا تنفست فاضت زفرتي شررا |
| كما استنار وراء القدحة اللهب |
| لم يبق لي غير نفسي ما أجود به |
| وقد فعلت فهل من رحمة تجب؟ |